जबलपुर। शहर के व्यस्ततम व्यापारिक क्षेत्र घमापुर चौक के समीप स्थित है-गोविंद भंडार। यह प्रतिष्ठान 1934 से दही-बूंदी-जलेबी की खुश्बू फैलाने के लिए मशहूर है। यहां का स्वाद का शुद्धता ही पहचान है। जिससे ग्राहक खिंचे चले आते हैं। सुबह साढ़े छह बजे से 11 बजे तक यहां मैदे की गरमा गरम जलेबियां मिलती हैं, जो दही के साथ खाने पर जायका दोगुना हो जाता है। दोपहर में बूंदी-दही के दीवानों का आगमन होने लगता है। शाम होते-होते बूंदी-दही समाप्ति की कगार पर पहुंच जाते हैं। इसी के साथ कच्चे नारियल की बर्फी बिकने लगती है। साथ ही दही-गुलाब जामुन तैयार रहता है। जिसकी जो पसंद, वह उसी हिसाब से फरमाइश करता है और दोने लेता चला जाता है।
संचालक मनीष गुप्ता व नीरज गुप्ता बताते हैं कि 1934 में उनके दादा-परदादा के जमाने से हलवाई परंपरा को गति मिली थी। जिसे बड़े भाई बाल गोविंद गुप्ता व छोटे भाई शंकर दयाल गुप्ता ने बखूबी आगे बढ़ाया। हमें यह सब विरासत में मिला। हमने पारिवारिक धरोहर को स्वाद व शुद्धता के मामले में एक नंबर बनाए रखने का संकल्प लेकर मिष्ठान व नमकीन मुहैया कराने में मन लगाया। इसी का नजीता है कि घमापुर चौक पर ग्राहकों की कमी कभी नहीं रहती। पुराने परंपरागत ग्राहक पीढ़ी-दर-पीढ़ी हमारे यहां से मिठाइयां लेते चले आ रहे हैं। वहीं नए-नए ग्राहक भी हर दिन बढ़ते चले जाते हैं। आसपास ही नहीं दूर-दराज से लोग ख्याति सुनकर मिठाई खरीदने चले आते हैं। एक बार स्वाद जीभ पर लगा तो फिर हमेशा यहीं आना उनकी आदत बन जाती है।
उन्होंने बताया कि कोरोना के साथ देश-दुनिया में इम्युनिटी बूस्टर शब्द प्रचलन में आ गया। लिहाजा, मिठाइयों को भी इस कसौटी पर खरा उतारने की होड़ मच गई। हमने भी अपनी विविध मिठाइयों को सूखे मेवे आदि से सरोबोर कर इम्युनिटी बूस्टर बना दिया है। इसी तरह मैदे की जलेबी माइग्रेन पीड़ितों के लिए शर्तिया दवा जैसा असर करती है। इसीलिए सुबह-सुबह मैदे की जलेबी की मांग काफी रहती है। खाने के शौकीन दही-जलेबी पसंद करते हैं। यही हाल बूंदी-दही खाने वालों का भी है। दोनोें के स्वाद में अंतर है। एक गरमा गरम तो दूसरी हल्की ठंड़ी खाने में आनंद देती है। वहीं गुलाब जामुन को दही के साथ खाने वालों की भी बात निराली है। वे स्वाद ले-लेकर चाव से खाते नजर आते हैं। सबसे खास बात यह कि कभी कोई ग्राहक हमारे व्यंजन खाने के बाद शिकायत करता नजर नहीं आया। ऐसा इसलिए क्योंकि सभी सामग्री गुणवत्ता में उम्दा होती हैं। दूध-खोवा, धी-तेल के मामले में हम कभी ग्राहकों के भरोसे व सेहत से समझौता नहीं करते। यह सीख हमें पारिवारिक परंपरा से मिली है।